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लेखनी प्रतियोगिता -18-Oct-2022 बेपरवाह इश्क

जमाने के सितम से कब डरा है
नफरतों की आंधियों के बीच
चट्टान सा अडिग खड़ा है
ना जाति धर्म देखे ना ऊंच-नीच
चाहतों के आसमां की जिद पे अड़ा है
ऐसे ही तो नहीं खिलता है कभी
किसी दिल के गुलशन में इश्क का गुलाब
किसी की कातिल निगाहों का बीज
शायद मन के आंगन में जरूर पड़ा है
कहां परवाह की है इश्क ने आज तक
हुआ चाहे कितना भी भयंकर लफड़ा है
इश्क की दौलत के सामने क्या है सल्तनत
खुश है वही जिसके दिल में इश्क का खजाना गड़ा है ।

श्री हरि
18.10.22


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10 Comments

बहुत ही सुंदर

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Hari Shanker Goyal "Hari"

19-Oct-2022 09:08 AM

धन्यवाद जी

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Punam verma

19-Oct-2022 08:11 AM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

19-Oct-2022 09:08 AM

धन्यवाद जी

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Renu

18-Oct-2022 11:26 PM

बहुत ख़ूब.....👍🌺

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Hari Shanker Goyal "Hari"

19-Oct-2022 03:32 AM

धन्यवाद जी

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